Wednesday, December 29, 2010

धूप और छाँव

इस ठंडी में क्या देखी है ?
तुमने प्यारी धूप और छाँव ॥
जिस सूरज से जलता था तन ,
गरमी में जलते थे पाँव ॥
जला अलाव तापते जन - जन ,
सुबह शाम हर गाँव - गाँव ॥
राम हमारे तुम्ही खेवइया ,
बीच भँवर है अपनी नाव ॥
छाँव कभी बारिश से चाहें ,
कभी चाहिए सूरज से ॥
छाँव माँ के आँचल की चाहें ,
छाँव प्रभु की कृपा से ॥
धूप और छाँव नहीं कुछ दूजे ,
सुख और दुख की कापी हैँ ॥
कभी धूप अच्छी लगती है ,
कभी निगोड़ी पापी है ॥
परिवर्तन ही जीवन है ,
इक रूप रहा न जाए अब ॥
धूप छाँव के इस बंधन से ,
प्रभु मुझको मुक्त करोगे कब ॥ - - -उदय भान कनपुरिया

अंतर्मन

अंतर्मन मेरी सुन ले बातें , कटती हैं तनहा क्यों रातेँ ॥ चाँद मुझे विरहा देता है , सर्दी में मारे है लातेँ ॥ मन चंचल है इत -उत देखे ,पता न उसका पाए ॥ जब बैठूँ मैं गुम - सुम होके , गुस्सा मुझ पर खाए ॥ मन की बातें मन ही जाने , मैं तो इतना जानूँ ॥ मेरा सब कुछ तुझ पर वारूँ , तुझको अपना मानूँ ॥ तुम्हारा प्रेमी - - - उदय भान कनपुरिया

New year 2011

I am happy . full of whims .| It is so sun shine , not so dim .| Love is everywhere , love in my heart . | I am in pell - mell to choose new shirt .| You are my chum . You have no fear .| Be with me, in this new year .| -HAPPY NEW YEAR 2011 _ _ _ UDAY BHAN

नया साल 2011 और मँहगाई

सबसे पहले आप सभी को नए साल की हार्दिक बधाइयाँ । बीते वर्ष दूध , प्याज , टमाटर , दालें , पेट्रोल इत्यादि के दामों को हमने रातों - रात बढ़ते देखा है । 15- 20 दिनों बाद इन दामों पर सरकार का नियंत्रण हो जाता है । और इस बीच मुनाफाखोर करोड़ से अरबपति बन जाते है । 2011 में मेरा सरकार और मुनाफाखोरोँ की मंडली से प्रश्न है - 1-' कौन बनेगा करोड़पति ? ' , 2- ' कौन बनेगा अरबपति ? ' मेरे पिता जी का कहना है कि ' जिस घर में परिवार का सदस्य ही चोर हो उस घर को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता । ' हमारे देश का वही हाल होने वाला है । मेरे देश के चोरोँ !/ भ्रष्टाचारियों ! 2011 में गंगा नहाओ , सुधर जाओ । - आपका अपना भारतवासी - - ' उदय भान कनपुरिया '।

कंबल

ठंड लग रही कंबल दे दो लाल हो चाहे नीला ॥ पर इतना तो ध्यान रहे की हो न बिलकुल गीला ॥ नेता ने कंबल लुटवाए बड़े बड़ों ने लूटे ॥ उन लोगों को न मिल पाए जिनके करम थे फूटे ॥ फुटपाथोँ पर बिन कंबल के कई स्वर्ग को तारे ॥ बाँटो कंबल मर जाएँगे कंबल बिना बेचारे ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Friday, December 24, 2010

नया साल 2011

नए साल पर तुम्हें मुबारक ॥ हर इक अच्छी बात ॥ तुम हो मेरी मैं हूँ तेरा ॥ अपनी है हर रात ॥ चाँद तुम्हें अपनी कर लेगा ॥ घर में रहना छुपकर ॥ सुंदर महिला जल जाएँगी ॥ दिखेँगी मुड़ - मुड़ कर ॥ तुम हो प्यारी तुम हो सच्ची ॥ नया साल कहता है ॥ कभी कभी मस्ती कर लेना ॥ भी अच्छा रहता है ॥ happy new year 2011. - - - uday bhan knpuriya

Thursday, December 23, 2010

भ्रष्टाचार

आम आदमी मंहगाई की , मार झेलता जाए ॥ मौसम आए या न आए , रेट तो बढ़ता जाए ॥ राजनीति सब्जी पर होती ॥ राशन - भ्रष्टाचार ॥ इतना पैसा कमा के सोना , हीरे जड़ी मज़ार ॥ इस पैसे से क्या कर लोगे , क्या पा लोगे इस जीवन में ॥ साथ नहीं जाता है कुछ भी , जब जाना हो उसके घर में ॥ काम क्रोध माया सब झूठी , काम नहीं कुछ आना ॥ बाँध पुटरिया सत कर्मों की , पार तुम्हें है जाना ॥ मत कर भ्रष्टाचार रे बंधु , मत कर भ्रष्टाचार ॥ झूठा यह संसार है प्यारे , सच्चा पालनहार ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Saturday, November 27, 2010

बाल कविता - खिड़की

घर बाहर का मेल कराती ॥ बंद खिड़कियाँ जेल बनाती ॥ सुबह सुबह जब आँखे खोलूँ ॥ सूरज के दर्शन करवाती ॥ खिड़की से दुनिया दिखती है ॥ खिड़की से दिखती है रेल ॥ दिखती है सड़कों पर गाड़ी ॥ दिखता है बच्चों का खेल ॥ मेरे घर में कई खिड़कियाँ ॥ हवा रोशनी देती हैं ॥ बंद सर्दियाँ , खुली गर्मीयाँ ॥ सबका चित हर लेती हैं ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Tuesday, November 16, 2010

चाहत - सुख और दुख

चाहत के दो पहलू होते ,एक है सुख और दूजा दुख ॥ चाहत पूरी पाते सुख , न हो पूरी होता दुख ॥ यदि चाहत ही न हो मन में, तो क्यों सुख दुख हों जीवन में ॥ चाहत को जिसने जीता है , उसका नाम हुआ जन जन में ॥चाहत खाना चाहत खजाना , चाहत रुतबा चाहत जनाना ॥ अब तो छोटे बच्चों को भी मुश्किल होता है समझाना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Sunday, November 14, 2010

बाल दिवस

चाचा का बर्थ डे जब आया ॥ दुनिया भर की खुशियाँ लाया ॥ हर बच्चे को बाल दिवस पर ॥ गोदी ले - ले खूब खिलाया ॥ श्वेत कबूतर गगन उड़ाकर ॥ हर हाथों में फूल थमाकर ॥ दुनिया भर को दिया है हमने ॥ शांति का मैसेज घर - घर जाकर ॥ बाल दिवस पर हम सब बच्चे ॥ भारत माँ से करते वादा ॥ शान बढ़ाएँगे भारत की ॥ दुनिया के हर कोने जाकर ॥ चाचा नेहरू की जय- - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता - तबीयत

हुजूर का मिजाज उनकी तबीयत से है ॥ इंसान की बरक्कत उसकी नियत से है ॥अच्छा खाओ तो तबीयत चंगी ॥ सोच हो बढ़िया तो हकीकत नंगी ॥ एक दूसरे की तबीयत बनाए रखना ॥ दिलों को दिलों से मिलाऐ रखना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Thursday, October 28, 2010

बाल कविता - काम चोर

काम चोर भी बड़ा नाम है । काम की चोरी बड़ा काम है । बड़े देश में बड़े निकम्मे ।चाय नाश्ता हर इक पल में । काम की बातें न भई न । गप्प निठल्ले हाँ भई हाँ । देश बिकेगा बिकने दो । मान घटेगा घटने दो ॥ अपनी हर दम करें बढ़ाई ॥ मक्खन बाजी चुगली भाई ॥ - -उदय भान कनपुरिया

Wednesday, October 27, 2010

बाल कविता- मेरी मम्मी

मुझे मम्मी के हाथों की रोटी पसंद ॥ मुझे मम्मी के हाथों का स्वेटर पसंद ॥ मुझे मम्मी के गाए भजन भाते हैं ॥ मुझे मम्मी के लाए ही ड्रेस भाते हैं ॥ मेरी मम्मी ही हम सब के कपड़े सिलेँ ॥ मेरी मम्मी ही हम सब से भेँटे मिलेँ ॥ मेरे भगवन मेरी तुमसे विनती यही ॥ मेरी मम्मी को कुछ भी सतावे नहीं ॥ मेरी मम्मी की तबीयत बनाए रखना ॥ मेरी मम्मी को हरदम हँसाऐ रखना ॥ - - - - उदय भान कनपुरिया

Monday, October 25, 2010

बाल कविता - दीपावली

दीपावली महोत्सव आया , लाया खुशियाँ प्यारी ॥ आँगन हर इक दीप जलेंगे ,पुलकित हैं नर - नारी ॥ लक्ष्मी माँ की पूजा होगी , गट्टे - खील चढ़ाऐँगे ॥ जब गणेश की पूजा होगी , लड्डू भोग लगाऐँगे ॥ बिजली की झालर से सारे , घर को हम ढक देते हैं ॥ रंग , पुताई , पेँट , सफाई ,सभी लोग कर लेते हैं। हाथी , घोड़े , बैल- खिलौने , चीनी के बनवाते हैं ॥ चूड़ा - लइया संग मिठाई , बच्चे खुशी से खाते हैं ॥ अपने घर से खील - मिठाई , दूजे घर भिजवाई ॥ दीवाली में सब कहते हैं , हम सब भाई - भाई ॥ राम चंद्र की बनी अयोध्या , दीवाली थी तभी मनी । इस दिन जो लक्ष्मी को पूजे , हो जाता है वही धनी ॥ - -- - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, October 13, 2010

दशहरा

मम्मी आज दशहरा मेला । मैं तो देखन जाऊंगी ॥ कंधे पर पापा के बैठी । रावण को जलवाऊँगी ॥ मूँगफली खीलेँ और गट्टा । मेले मे मैं खाऊँगी ॥ गुड्डा, गुड़िया , बर्तन , चूड़ी , खूब खिलौने लाऊँगी ॥ मम्मी आज ............॥ अबकी लँहगा चुनरी लूँगी । लाल दुपट्टा ओढूँगी ॥ धनुष बाँण ले के मेले से । दुष्टोँ को न छोडूँगी ॥ मम्मी आज ..............॥ - - - - उदय भान कनपुरिया

चाँद

चाँद ईद का चाँद दूज का । मैं तो हर दिन चाँद पूजता ॥ सावन की पूरनमासी हो । या फिर हो चकवी का चाँद ॥ रूप रंग में सबसे अव्वल । हर करवा पर चौथा चाँद । चाँद चौदवीँ मेरा प्रियतम ॥ छठ पूजा में पूजूँ चाँद ॥ कभी चाँद मेरे मामा हैं । कृष्ण अष्टमी बढके चाँद ॥ - उदय भान कनपुरिया

माँ दुर्गा

मैंने दुर्गा जी को देखा । देखा उनका रूप महान ॥ बड़ी बड़ी आखेँ भी देखी । देखी चेहरे पर मुस्कान ॥ मुकुट स्वर्ण का शीश सुशोभित । हाथों में उनके त्रिशूल ॥ महिषासुर का वध कर डाला । शक करना बिलकुल निर्मूल ॥ दुर्गा हैं शक्ति की देवी । दुर्गा धन और धान्य स्वरूप ॥ दुर्गा हैं देवोँ की देवी । दुर्गा आनंदी फल रूप ॥ ॐ श्री दुर्गाय नम: ॥ ॐ ........... ॥ - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, September 29, 2010

बाल कविता छुट्टी

रविवार को छुट्टी होती , बाकी दिन होता है काम । दिन में आटा चक्की चलती , रातों को हर शह आराम । दंगा, क्रिकेट , जनम , मरण दिन , भारत में हर दिन अवकाश । ऐसा चलता रहा तो इक दिन भारत बन जाएगा दास । बीजेपी का भारत बंद , कांग्रेस का भारत बंद । मत कर छुट्टी ज्यादा भइया , देश चलेगा बिलकुल मंद । - - उदय भान कनपुरिया

अयोध्या पर फैसला

पहले लोग संस्कृत बोलेँ , अब बोलेँ हैं हिंदी ॥ पहले जो साड़ी पहनें थे , अब पहनें हैं मिँनी ॥ तो फिर हिंदू मुस्लिम दोनोँ , क्यों लड़ते हैं भाई ॥ जब कुछ भी तो फिक्स नहीं है , सब बदलेगा सांई ॥ एक घाट में कई हैं जलते , एक कब्र में कई दफनते ॥ यह धरती हम सब की माता , क्यों भाई को भाई खलते ॥ समय समय पर भेष बदलते , समय समय पर बोली ॥ फिर भी इंसानों की जातेँ , खेलें खूनी होली ॥ राम कहें या कहें रहीमा , दोनों हैं ईश्वर के नाम ॥ टुकड़ों को लड़ते हो पागल , हर कण में उसका है धाम ॥ कर्म करो मत करो लड़ाई , भजते जाओ जय श्री राम ॥ हर दिल में बसते हैं प्रभु जी, जब लेते हैं उनका नाम ॥ जय श्री राम . . . - -उदय भान कनपुरिया

कविता - महात्मा गाँधी

गाँधी बाबा बड़े साहसी, उनकी ताकत श्रेष्ठ विचार ॥ आगे -आगे बापू चलते , पीछे उनके देश का प्यार ॥ भारत माँ का इक गुजराती , जिसने बदला दुनिया को ॥ अंग्रेजोँ की जड़े खोद कर , उन्हें खदेड़ा बाहर को ॥ खादी धारी एक फकीरी , चरखा काते जीते दिल ॥ धर्म स्वदेशी , कर्म स्वदेशी , आजादी उनकी मंजिल ॥ न गन न तलवार उठाते , दुश्मन के बन जाते मीत ॥ दो अक्टूबर को भारत मेँ , सब गाते हैं उनके गीत ॥ - उदय भान कनपुरिया

Friday, September 17, 2010

नवीन वायु सेना गान

सूरज की पहचान अमर है । गंगा अविरल बहती है ॥ नभ में मुखरित और चर्तुदिश । वायु सेना रहती है ॥ हम प्रहरी , आकाश सुरक्षित ।वादा सबसे करते हैं ॥ भारत पर जो आँख उठाए ।ऐसे दुश्मन मरते हैं ॥ हम पंक्षी हैं मुक्त गगन के । दुश्मन हमसे डरता है ॥ हम जब भी हुंकार लगा दें । माँफी माँगा करता है ॥ युद्ध काल में सर्व श्रेष्ठ हैं । शांति काल में धैर्य वती ॥सभी आपदाओं में हमने । धन और जन की वाट तकी ॥ भारत माँ हम नीली सेना । तुझको तिलक लगाऐँगे ॥ जब भी तुझ पर आए आफत । जान लुटाते जाएँगे ॥ हमको तेरी सौँ है माता । हम परचम लहराऐँगे ॥ दुश्मन को ताकत विहीन कर । मर्दन करके आएँगे ॥- - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- कानपुर की राधा

मैं कानपुर की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं लाल दुपट्टे वाली हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं गोरी गोरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं टीचर जी की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥मैं कृष्णा तेरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥- - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, September 15, 2010

आकाश

बादल भी जिसको पा न सके , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जिसे क्षितिज में सागर चूम रहा , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जो प्यार करे फिर दे आवाज , मैं उसका दामन भरता हूँ ॥अभिमानी अत्याचारी को , मैं भूमि दिखा के रहता हूँ ॥मैं ईश्वर का घर बार सदा ,है स्वर्ग नर्क का द्वार कहाँ ? वैसे तो पृथ्वी सब खींचे , पर रूहोँ का संसार कहाँ ? आकाश परिँदोँ की धरती , आकाश जहाजों की माया ॥ आकाश धरा के छत जैसा , आकाश मोहब्बत की छाया ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Saturday, September 11, 2010

सतसंग

हे भगवन सब सतसंगी हों , जीवन में सब धर्म वृती हों ॥ हो ज्ञानी या हो अज्ञानी , प्रभु चरणों में सभी रती हों ॥ राम नाम का मरम बड़ा है , कृष्ण कन्हइया यहीं खड़ा है ॥ बंद पलक से उसको देखूं , हम सबमेँ तो वही बड़ा है ॥ - - उदय भान कनपुरिया

जय गणेश

लम्बोदर है नाम उन्ही का , एक दंत भी कहते हैं॥ हर दिन सीता - राम धरा पर , नाम उन्ही का लेते हैं ॥ बल में शिव के गण हारे थे , बुद्धि में सब देव जने ॥ श्री गणेश को लड्डू प्यारे , कभी न खाते खड़े चने ॥ हम सब को देते हैं शिक्षा , मातु - पिता की सेवा का ॥ अबकी उनको भोग लगाएँ , मिलकर हम सब मेवे का ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, September 8, 2010

काँमनवैल्थ गेम- कविता commonwealth games poem

धरती हमारी माँ है , जीवन हमारा इससे ॥ बचपन से हम बढ़ें हैं , शेरोँ के सुन के किस्से ॥ हाकी हमारी चाची , कुश्ती हमारे चच्चा ॥ शूटिंग में मारे बुल पे , हिन्दोस्ताँ का बच्चा ॥ गंगा के पुत्र हम हैं , सागर को चीर डालें ॥ जब तैरने को आवेँ , मछली को पार पालेँ ॥ हमने कबड्डियोँ में , सरताज को हराया ॥ शतरंज का खिलाड़ी , हमसे न बचने पाया ॥ बिलियर्ड में है सेठी , राहुल बसे अमेठी ॥ जब दौड़ते हैं मिल्खा , दुश्मन दिखाता पीठी ॥ टेनिस में पेस - भूपति , दुश्मन को मात देते ॥ देखें जो सानिया को , वो दिल को थाम लेते ॥ शीला तू अबकी दिल्ली , दुल्हन बना के रख दे ॥ भारत विजय करेगा , दुनिया को सारी चख दे ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Tuesday, September 7, 2010

आधुनिक पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं विद्या बालन के कुर्ते में टाँका जाऊँ ॥ चाह नहीँ राखी का प्रेमी बन शादी को ललचाऊँ ॥ चाह नहीं अस्पतालों में घुसूँ , बुके में मुस्कराऊँ ॥ मुझे तोड़ लेना अमीर माली । फ्लावर शो में देना तुम भेज । मातृ भूमि के कितने बच्चे , नित दिन आते मस्ती हेतु ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Monday, September 6, 2010

मेरी बहन मीतू

इस जीवन की आशा है जो , सदा सरल परिभाषा है जो ॥ सबसे सुंदर मुस्कान लिए , आकाशी अभिलाषा है जो ॥ नयनोँ की आभा बनी रहे , चहरे की कांति चमक जाए ॥नित नए जोश से भर कर वो , सारी दुनिया पर छा जाए ॥ आशीष मेरा हर पल तुझ पर , ईश्वर तुझ पर उपकार करें ॥ तुम स्वस्थ रहो आजीवन भर , धन -धान्य भरा घर - द्वार रहे ॥ मीतू मेरी बहना प्यारी , मैं हर पल तुमको याद करूँ ॥ जब जो चाहो कहना मुझसे , मैं हर पल दिल के पास रहूँ ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Sunday, August 22, 2010

बाल कविता - कम्प्यूटर/ COMPUTER

कम्प्यूटर में पिक्चर देखो॥ कम्प्यूटर में खेलो खेल॥ कम्प्यूटर से गिनती गिन लो॥ कम्प्यूटर से भेजो मेल ॥ कम्प्यूटर का बड़ा दिमाग ॥ जिसमें होते कई विभाग ॥ आओ इसको हम अपनाएँ॥ जीवन अपना श्रेष्ठ बनाएँ ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Saturday, August 21, 2010

बाल कविता- फूल /FLOWER

फूलों की खुशबू है अच्छी , मत तोड़ो जो कली हो कच्ची ॥ बाग - बगीचे खिल जाते हैं , फूलों सी हो सच्ची बच्ची ॥ लाल रंग का फूल कमल है , लाल गुलाबी दिखे गुलाब ॥ गेंदे का रंग होता पीला , सतरंगी है अपने ख्वाब ॥ फूलों से माला बनती है , पूजा की थाली सजती है ॥ फूलों से है प्यार पनपता , फूल लदी नारी लजती है ॥ - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता - मेँढ़क /FROG

कीचड़ में बैठा देखा , और टर्र -टर्र करता देखा ॥ देखा मैँने छोटा मेँढ़क , कभी -कभी मोटा देखा ॥ उल्टी जीभ पकड़ ले कीड़ा , बन जाता सांपोँ का भोज ॥ पूरे साल नजर नहिँ आता , बारिश में दिखता है रोज ॥ पैदल नहीं चला करता , यह कूद कूद कर चलता है ॥ पानी के गड्ढोँ , तालाबों में इसका घर रहता है ॥ - -उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- बरसात

ये रिमझिम है, ये मध्यम है , ये गीली है, और तरल है ॥ प्यासा बोले ये अमृत है , गर्मी बोले ये राहत है ॥ धरती बोले मेरा शाँवर , बादल बोले मोर पसीना ॥ सूरज का घूँघट बन जाती , पृथ्वी का भर जाती सीना ॥ वर्षा से धरती सज जाती , हरे -हरे कपड़े सिलवाती ॥ फूलों का गजरा बालों में , गंगा- जमुना खूब नहाती ॥ बादल अपनी कड़ी कमाई , धरती माँ को देते हैं ॥ जिससे धरती फसल उगाती , हम सब जिंदा रहते हैं ॥ कुएँ बंद हैं ; बंद तलाब , झील है गायब ; नहरेँ ख्वाब ॥तारकोल सीमेँट बिछा है , हो वर्षा से कैसे लाभ ॥ इसीलिए बारिश बदनाम , बाढ़ कर रही काम तमाम ॥ बिन बारिश सूखा आता है , बारिश से आती है बाढ़ ॥ खेतों में बैठी विधवा की , आँखें तरसेँ जेठ अषाढ़॥ - - उदय भान कनपुरिया

Friday, August 20, 2010

बाल कविता- लेह में बादल फटा

भगवान हमें लेह जैसी दैवीय आपदाओं से बचाए और वहाँ के कष्ट जल्दी दूर हों। कृपया सभी देशवासी सहायता करें। दोहे - 1:बादल फटा लेह में, हुई जिंदगी चित्त।ईश्वर का परकोप यह, हम सब मात्र निमित्त॥ 2: प्रकृती से खिलवाड़ कर , तुम बनते बलवान। उसकी लाठी जब चले , बूझे न कोई नाम॥ 3: सभी जुटे धन धान्य संग, लेह बनावन लागि।का करि के तुम बैठी रहि, काहे न देत सहाई॥ - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- गरीबी/ POEM-POVERTY

जनता :-D -आज खुशी का दिवस हमारा, हमने दस फुट रावण मारा। गरीबी :-) -सभी लपेटो इसकी बातें, भाँग आ गया धर से खाके। रावण तेरे खड़ा सामने, लेकर तेरी सीता रानी। हिम्मत हो तो ,हाथ थाम ले। राम ;-) ठैर रे सीते ! कर मत चिंता, देख इसे मैं कैसे धुनता। सूत्रधार :-) आज अमीरी रूपी रावण, बड़े बड़े जबड़ोँ को बाकर। खड़ा हुआ है खाने को, भूखी नंगी सीता को। यहाँ हजारों ऐसी सीता,मगर एक रावण की दासी। आज जरूरत कई राम की, सीता जिनकी बने राजश्री। करें राम जब रावण अंत, तभी बनेगा देश स्वतंत्र॥ - - उदय भान कनपुरिया

कविता- दाँतेवाड़ा के शहीदों को सलाम

चाँद की शीतलता है तुझमेँ, सूरज सा अंगार। तेज कीर्ति का तेरे मुख पर, कर्म तेरा श्रंगार। भूमि देश की पावन हो गई, फौजी तुझ सा पाकर। भूल न फिर हमको तुम जाना, दूजी दुनिया जाकर। नक्सलवादी बने राक्षस ,मानवता के दुश्मन ।उनका अंत बुरा होना है, घटिया उनका तन मन। हे भारत के वीरोँ तुमको, सभी सलामी देते हैँ। संभल जाएँ वो दुष्ट(नक्सली) अभी, जो सबका जीवन लेते हैं॥ - उदय भान कनपुरिया

Thursday, August 19, 2010

कविता- सुंदरता

तुम सुंदर हो सुंदरता से। तुम कोमल ज्यादा सरिता से। तेरी बोली कोयल से प्यारी ।तू जग में है सबसे न्यारी । तू चले हिरन बल खा जाए। तुझे देख चाँद शर्मा जाए। तेरे बँधे केश से इंद्र विवश। लट खोले बादल बरस उठे। तेरे होंठो का रस पीने को। मैखाने देखो तरस उठे। ये नयन तीर से हैं तीखे। जिसे देख ये दिल डर जाता है। मर जाता है वह शख्स तभी । जब प्रेम रोग हो जाता है। - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- बधाई पत्र

अभी अभी मेरे दिल में खयाल आया है॥ हजारों लाखों बहारेँ ये साल लाया है। सभी बड़ों को तो हमने प्रणाम भेजे हैं। करके बंद हमने लिफाफे में प्राण भेजे हैं।- -उदय भान कनपुरिया

Wednesday, August 18, 2010

कविता -मेरी प्यारी पत्नी ( MY LOVING WIFE)

पत्नी मेरी धर्म-कर्म में, साथ हमेशा मेरे॥ रूप रंग में अव्वल है वह, संग लिए हैं फेरे॥ तन मन की ताकत बन जाती, जब भी मैं घबराऊँ॥ दर्द अंग का हर लेती है,जब जब मैं थक जाऊँ॥ होम प्रबंधन के विषयों में, कई वर्ष का अनुभव॥ लालन पालन हो बच्चों का , बिन इसके क्या संभव॥ चाल है इसकी हिरनी जैसी, बोली मधुर सुहाती॥ कभी क्रोध वश नहीं चीखती, कभी नहीं चिल्लाती॥ नए जमाने के लोगों से, गिटपिट इग्लिश बोले॥ दादी अम्मा के संग बैठे, साँझ ढले वृत खोले॥ कहती है मैं मर जाऊंगी, अगर छोड़ के जाओ॥ जान तुम्हारी मैं ले लूँगी, दूजी को जो लाओ॥ लगते हैं उसको तो गुण में , सभी पड़ोसी अच्छे॥ फिर अकसर भोलेपन में वो, खा जाती है गच्चे॥ दिल में कोई बात न रखती ,नेक नियति वाली है॥ मेरी तो बस एक है बीबी, बाकी सब साली हैं॥ -- उदय भान कनपुरिया

मेरी माँ (POEM- MY MOTHER)

देवताओं से भी पहले ,मैं तो पूजूँ माँ को बस ॥ मेरी जननी ;माँ तुझे,मेरे समर्पित जन्म दस॥ स्व को तजकर क्यों सदा, तुमने हमें सब कुछ दिया॥ अन्न -कपड़ा; दूध -माखन, सब दिया कुछ न लिया॥ हम सभी बेटे तुम्हारे , त्याग को करते नमन॥ स्वास्थ्य खोकर ; स्वस्थ रखना पुत्र को, तुम हो चमन ॥ जिस तरह ये प्रकृति हरपल, पुत्र को देती रही॥ सारे झंझावात झेले, कष्ट सह बहती रही॥ उसी मांफिक बह रही है, माँ तेरी ममता जहाँ॥ पूज्य है सबसे प्रथम , इस धरा पर हे माँ वहाँ॥ इसलिए हे त्याग की प्रतिमूर्ति ,तुझको पूजता हूँ॥ हर जनम रज चरण पाऊं, ऐसी योनी खोजता हूँ॥ - - उदय भान गुप्ता

Tuesday, August 17, 2010

बाल कविता- मेरे मम्मी पापा(POEM-MY PARENTS)

पापा मेरे तोँदूमल हैं, मम्मी है फूलों की बेल । पापा मेरे बिलकुल बुद्धू ,मम्मी है नाँलेज की रेल। पापा मेरे बड़े भुलक्कड़ ,मम्मी को सब याद रहे।पापा का बटुआ है खाली, माँ का धर आबाद रहे। पर मेरे पापा हैं सीधे , मुझको हरदम भाते हैं। मेला मुझको ले जाते हैं, झूले पर झुलवाते हैं॥ --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -छोटा बच्चा (POEM-LITTLE BABY)

पाँच बजे मैं उठ जाती हूँ, सात बजे जाती स्कूल। एक बजे फिर लंच करूँ मैं, शाम पाँच सब जाती भूल॥ खेल खेलती हूँ जी भर के, खूब उड़ाती हूँ मैं धूल। रात डिनर पापा मम्मी के, संग नौ बजे होता है। साढ़े नौ पर गुड नाइट कर, छोटा बच्चा सोता है। --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -भारत देश (POEM-MY COUNTRY india)

देश हमारी माता है, हमको भारत भाता है॥ दुनिया की हम आशा हैं, यही नयी परिभाषा है। अन्न यहीं उपजाऐंगे, जान लुटाते जाऐँगे॥ शांति संदेशा लाऐँगे, विश्व विजय कर आएँगे॥ हमको आगे बढ़ना है,चोटी पर भी चढ़ना है॥पीछे मुड़ न देखेंगे, दुश्मन पे बम फेंकेगे॥ दुश्मन तेरी खैर नहीं, करना हमसे बैर नहीं॥ जोश हमारे मन में है, शौर्य हमारे तन में है॥ जिसने माँ का दूध पिया, आ कर ले जो नहीं किया॥ हम सब सच्चे वीर हैं, जोशीले रणधीर हैं॥जय भारती ----उदय भान गुप्ता

छोटी बिटिया -कादम्बरी (POEM- KADAMBARI)

कादम्बर इक नाम अनोखा, बोली कोयल खा मत धोखा॥ कोयल ,मैना नाम इसी के, मीठी वाणी; देव सरीखे॥ कादम्बर ही सरस्वती है, वो देवी है और सती है॥ बाणभट्ट की लिखी कहानी, कादम्बर की सुनो कहानी॥कितना सुंदर नाम तुम्हारा, करो जगत में नाम हमारा॥ --उदय भान गुप्ता

Monday, August 16, 2010

बाल कविता -रक्षा बंधन (POEM- RAKHI)

दोहा -रक्षा बंधन में जुड़े, दोनो बहना भाई। करेँ आरती देती रुचना, राखी संग मिठाई॥ राम कृष्ण के देश में, कैसा भइया प्रेम। बहनोँ के आशीष पा, यूवक जीतेँ देश॥ आज कल की औरतें, आंटी से चिढ जाऐँ।बुढियोँ से दीदी कहो,तब तुमसे बतियाऐँ॥ --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -गायत्री (POEM- GAYATRI)

वेदों ने इक छंद बताया,हम सब ने भी उसको गाया। गायत्री है नाम उसी का, छ: वर्णोँ में जिसको पाया। लिखा उसी में इक श्लोक ,जपते रहते जिसको लोग।खैर का पेड़ भी गायत्री के, नाम से जाना जाता है।कैथा जिससे बनता है, जो पान में खाया जाता है। मंत्र गायत्री सबसे पावन, पूर्ण कामना ;भर जाए दामन। उस ईश्वर ने हमें बनाया, हम सब उसकी ही हैं छाया। वो हम सब का पालन करता, सब दुखियोँ के दुख वह हरता। तेज उसी का चारों ओर, हर इक कण पर उसका जोर।तुझको हर पल भजते भगवन, मार्ग दिखा दो ;बन जाए जीवन। यही मंत्र का मतलब है, गायत्री क्या है? रब है। गायत्री सावित्री हैँ, गायत्री माँ दुर्गा हैं। जय माँ गायत्री--- उदय भान गुप्ता

Sunday, August 15, 2010

मंगल कामना( POEM- GOOD WISHES)

मिल रहे दो ह्रदय कोमल ,आज मंगल गीत गाओ। प्रभु कृपा से ही मिली है, यह सुघर जोड़ी सुहानी। हर अधर पर स्वयं मुखरित ,प्रति कि पावन कहानी। प्रीति अंकुर बीन के कवि, गीत कोई गुनगुनाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ तब दरश को तृषित थे दृग, टकटकी पथ पर लगाए।आगमन की आस में प्रिय , पलक पारंबर बिछाए। हो गए हैं धन्य लालन, नेह नित नूतन बड़ाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ जगत पति जगदीश मानो, स्वगत नगरी में पधारे। समर्पित मिथलेश सादर , हम सदा सेवक तुम्हारे। आप हम करके कृपा बस, अब हमें अपना बनाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ युग युगों के स्वप्न सचमुच, हो रहे साकार भाई। मेरे संबंधी सभी सज्जन , परस्पर दें बधाई। सुगम मालाऐँ गले में, झूलती झूले झुलाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ धनीराम सुजान श्रीयुत, शिवरतन स्वामी हमारे। प्राप्त हो आनंद वैभव, शांति एवं सौख्य सारे। आज प्रभुदयाल प्रमुदित, स्वयं तन मन धन लुटाओ। आज मंगल गीत गाओ॥

बाल कविता -उन्नति

मैं भारत देश की उन्नति हूँ, मैं विश्व मुकुट सी सुंदर हूँ। मैं धर्म कर्म में लीन सदा, मैं जन जीवन की उन्नति हूँ। जो आशावादी होता है। वह मेरा साथी होता है। जो घोर निराशावादी है, मैं उनकी जीवन अवनति हूँ। आकाश में उड़ते पंछी हों, या मस्त कलंदर हाथी हों। वो सभी धरा के अंग सदा , मैं उन सब की भी उन्नति हूँ। ओ देश सपूतोँ उठ जागो , कर्मठ बनकर दौड़ो भागो। अब विश्व कि नजरें तुम पर हैं, रणधीर तुम्हारी उन्नति हो।-- उदय भान गुप्ता

बाल कविता -नांग पंचमी

ईश्वर के सब प्राणी बेटे, हम उनमेँ से एक।कोई चीँटी कोई हाथी, नाग भी उनमें एक। फिर क्यों मानव दादा बनकर, सब पर जुल्म दिखाता। देखे नाग तुरत दे मारे, खुद को बड़ा बताता। नाग पंचमी पर भारत में, दूध नाग को देते हैं। बच्चा हो या बड़ा, सभी आशीष उसी से लेते हैं। गेहूँ -चने उबाल के खाते, खीर और सिँवई बनाते हैं । कानपुर में गुड़िया के भी, नाम से इसे मनाते हैं। -- उदय भान गुप्ता

Thursday, August 12, 2010

बाल कविता -स्वतंत्रता दिवस-15 अगस्त

स्वतंत्र हैं स्वतंत्रता दिवस पे हम, ये जान लो । देश -आन को हि अपनी आन,लोगों मान लो। देश की प्रगति के बिन, हमारी कुछ वकत नहीं। देश पहले है तभी तो हम हैं, वर्ना हम नहीं। कर्म की महानता हि, धर्म को करे बड़ा। देश की विशालता हि, क्रांति को करे खड़ा। सबसे पहले शांति हो, अमन भी हो; ओ चैन भी। सबके बाजुओँ का दम लगे तो,भागे रैन भी। हम तो देश पुत्र हैं, ओ धरती के सुपुत्र भी। युद्ध में जो डट खड़े हों,भाग जाए शत्रु भी। -उदय भान गुप्ता

Badal Mama

बाल कविता -कश्मीर समस्या

काश्मीर के दो टुकड़े हैं, एक पाक पे एक यहाँ। मुसलमान सब रहते उसमें, पंडित उनने दिए भगा। तीन सौ छप्पन धारा लाकर,काश्मीर को बड़ा किया। लोग वहाँ के देश विरोधी , स्वायत्ता पर जोर दिया। स्वर्ग वहीं है नर्क वहीं, ईश्वर ने वरदान दिया। आतंकी छाया में पलकर ,मानव ने बर्बाद किया। शान्ति प्रक्रिया कायम होकर , अमन चैन जब छाएगा। तभी वहाँ का हर इक बच्चा, अच्छा जीवन पाएगा। --उदय भान गुप्ता

Wednesday, August 11, 2010

बाल कविता- बाढ़

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है, आसमान से पानी। छाता लेकर गई मार्केट, मैं और मेरी नानी। अगले दिन रस्तोँ पे पानी, घर बाहर में पानी। स्कूलों में छुट्टी हो गई, आफिस में मनमानी। दिन दस बीते; हाल था नाजुक, छत पर सब चढ़ बैठे। नाँव बन गई कई घरों में, परेशान सब जेठे। सेना ने राशन बरसाया, कई बचाई जानें।राजनीति अब तेज हो गई, नेता लगे कमाने। इसके बाद गाँव मेँ मेरे, कभी बाढ़ जो आई। तुमसे मेरे किशन कन्हैया होगी खूब लड़ाई। --उदय भान गुप्ता

बाल कविता - चीँटी

लाल रंग की चीँटी देखी, देखी काली मैंने ।एक लाइन में चली जा रहीं,कोई नहीं अकेले।देखी मैंने उसकी हिम्मत ,चढ़ जाती दस मंजिल पर। अपने से दस गुना उठाती,लाद गठरिया पीठी पर। अनुशासन की बात सिखाती, अपने जीवन दर्शन से। मानव को जीना सिखलाती , चीँटी अपने जीवन से।

बाल कविता मँहगाई

रात और दिन की अंतर दिखता, एक साल में भावों का। आम आदमी दुबला होता , जाए शहरों गाँवों का। दाल ओ चावल चखै अमीरी, दूध सभिन से सस्ता भा। मोट मेहरिया सूँघे सब्जी, दुबरन का बिल खस्ता भा। ऊँचे ऊँचे सपने देकर, गल्ला बीच सड़क सड़वाइन । नकली माल खिलाइन पहले, ओके बाद देत अजवाइन।बैंक सभी के देत है कर्जा, कर्जे मा घर मोटर पाइन। ओसे जब मँहगाई भड़की, कउनो रस्ता नहीँ सुझाइन। अब तो सबसे सस्ता फोनवा, लड़का लड़की चोँच लड़ाऐँ। शर्म हया की बातें छोड़ो, बिना ब्याह संग सोवैँ खाऐँ। भ्रष्टाचारी कलमाड़ी तो बहुत ही बड़ा खिलाड़ी बा। कामनवैल्थ कराइन को ऊ, देश के पैसा खाइल बा। एक तरफ गल्ला सड़ता है, कहीं भूख से होती मौत। एक तरफ सूखा पड़ता है, कहीं बाढ़ पर लूट खसोट। मँहगाई ने दामन चीरा, क्या कुछ अब बच पाएगा । राम चंद्र कह गए सिया से, कौआ मोती खाएगा।

Wednesday, July 28, 2010

बाल कविता बादल मामा, वर्षा मौसी

आप सभी के साथ है रिश्ता, मुझको अच्छा लगता पिश्ता। मैँ बादल मामा पर बैठी , वर्षा मौसी तू क्योँ ऐँठी। रोज यहाँ पानी बरसाती, उत्तर भारत क्यों न जाती। मेरे नाना तुझे बुलाते, बेटी को नित फोन लगाते। उनकी भी तुम प्यास बुझा दो , नानी घर पानी बरसा दो। में पापा संग पेड़ लगाऊँ, भइया को भी यही सिखाऊँ। हरियाली है तुम्हें बुलाती, या तुम हरियाली को लाती? वर्षा मौसी मुझे भीगा दो, जोर से बरसो प्यास बुझा दो। मामा काले तुम हो गीली, मेरे घर की माटी पीली। सावन भादोँ जल्दी आना ,खेतों की तुम प्यास बुझाना। सबके मामा सबकी मौसी , बादल मामा वर्षा मौसी।

बादल मामा, वर्षा मौसी

आप सभी के साथ है रिश्ता, मुझको अच्छा लगता पिश्ता। मैँ बादल मामा पर बैठी , वर्षा मौसी तू क्योँ ऐँठी। रोज यहाँ पानी बरसाती, उत्तर भारत क्यों न जाती। मेरे नाना तुझे बुलाते, बेटी को नित फोन लगाते। उनकी भी तुम प्यास बुझा दो , नानी घर पानी बरसा दो।

Tuesday, June 22, 2010

APNA HINDUSTHAN

THIS IS YOUR UDAY BHAN GUPTA, M.A. (HINDI), UGC NET QUALIFIED. WANT TO SHARE MY OWN FEELING IN MY OWN LANGUAGE OF BHARTEEYA.