Sunday, August 22, 2010

बाल कविता - कम्प्यूटर/ COMPUTER

कम्प्यूटर में पिक्चर देखो॥ कम्प्यूटर में खेलो खेल॥ कम्प्यूटर से गिनती गिन लो॥ कम्प्यूटर से भेजो मेल ॥ कम्प्यूटर का बड़ा दिमाग ॥ जिसमें होते कई विभाग ॥ आओ इसको हम अपनाएँ॥ जीवन अपना श्रेष्ठ बनाएँ ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Saturday, August 21, 2010

बाल कविता- फूल /FLOWER

फूलों की खुशबू है अच्छी , मत तोड़ो जो कली हो कच्ची ॥ बाग - बगीचे खिल जाते हैं , फूलों सी हो सच्ची बच्ची ॥ लाल रंग का फूल कमल है , लाल गुलाबी दिखे गुलाब ॥ गेंदे का रंग होता पीला , सतरंगी है अपने ख्वाब ॥ फूलों से माला बनती है , पूजा की थाली सजती है ॥ फूलों से है प्यार पनपता , फूल लदी नारी लजती है ॥ - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता - मेँढ़क /FROG

कीचड़ में बैठा देखा , और टर्र -टर्र करता देखा ॥ देखा मैँने छोटा मेँढ़क , कभी -कभी मोटा देखा ॥ उल्टी जीभ पकड़ ले कीड़ा , बन जाता सांपोँ का भोज ॥ पूरे साल नजर नहिँ आता , बारिश में दिखता है रोज ॥ पैदल नहीं चला करता , यह कूद कूद कर चलता है ॥ पानी के गड्ढोँ , तालाबों में इसका घर रहता है ॥ - -उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- बरसात

ये रिमझिम है, ये मध्यम है , ये गीली है, और तरल है ॥ प्यासा बोले ये अमृत है , गर्मी बोले ये राहत है ॥ धरती बोले मेरा शाँवर , बादल बोले मोर पसीना ॥ सूरज का घूँघट बन जाती , पृथ्वी का भर जाती सीना ॥ वर्षा से धरती सज जाती , हरे -हरे कपड़े सिलवाती ॥ फूलों का गजरा बालों में , गंगा- जमुना खूब नहाती ॥ बादल अपनी कड़ी कमाई , धरती माँ को देते हैं ॥ जिससे धरती फसल उगाती , हम सब जिंदा रहते हैं ॥ कुएँ बंद हैं ; बंद तलाब , झील है गायब ; नहरेँ ख्वाब ॥तारकोल सीमेँट बिछा है , हो वर्षा से कैसे लाभ ॥ इसीलिए बारिश बदनाम , बाढ़ कर रही काम तमाम ॥ बिन बारिश सूखा आता है , बारिश से आती है बाढ़ ॥ खेतों में बैठी विधवा की , आँखें तरसेँ जेठ अषाढ़॥ - - उदय भान कनपुरिया

Friday, August 20, 2010

बाल कविता- लेह में बादल फटा

भगवान हमें लेह जैसी दैवीय आपदाओं से बचाए और वहाँ के कष्ट जल्दी दूर हों। कृपया सभी देशवासी सहायता करें। दोहे - 1:बादल फटा लेह में, हुई जिंदगी चित्त।ईश्वर का परकोप यह, हम सब मात्र निमित्त॥ 2: प्रकृती से खिलवाड़ कर , तुम बनते बलवान। उसकी लाठी जब चले , बूझे न कोई नाम॥ 3: सभी जुटे धन धान्य संग, लेह बनावन लागि।का करि के तुम बैठी रहि, काहे न देत सहाई॥ - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- गरीबी/ POEM-POVERTY

जनता :-D -आज खुशी का दिवस हमारा, हमने दस फुट रावण मारा। गरीबी :-) -सभी लपेटो इसकी बातें, भाँग आ गया धर से खाके। रावण तेरे खड़ा सामने, लेकर तेरी सीता रानी। हिम्मत हो तो ,हाथ थाम ले। राम ;-) ठैर रे सीते ! कर मत चिंता, देख इसे मैं कैसे धुनता। सूत्रधार :-) आज अमीरी रूपी रावण, बड़े बड़े जबड़ोँ को बाकर। खड़ा हुआ है खाने को, भूखी नंगी सीता को। यहाँ हजारों ऐसी सीता,मगर एक रावण की दासी। आज जरूरत कई राम की, सीता जिनकी बने राजश्री। करें राम जब रावण अंत, तभी बनेगा देश स्वतंत्र॥ - - उदय भान कनपुरिया

कविता- दाँतेवाड़ा के शहीदों को सलाम

चाँद की शीतलता है तुझमेँ, सूरज सा अंगार। तेज कीर्ति का तेरे मुख पर, कर्म तेरा श्रंगार। भूमि देश की पावन हो गई, फौजी तुझ सा पाकर। भूल न फिर हमको तुम जाना, दूजी दुनिया जाकर। नक्सलवादी बने राक्षस ,मानवता के दुश्मन ।उनका अंत बुरा होना है, घटिया उनका तन मन। हे भारत के वीरोँ तुमको, सभी सलामी देते हैँ। संभल जाएँ वो दुष्ट(नक्सली) अभी, जो सबका जीवन लेते हैं॥ - उदय भान कनपुरिया

Thursday, August 19, 2010

कविता- सुंदरता

तुम सुंदर हो सुंदरता से। तुम कोमल ज्यादा सरिता से। तेरी बोली कोयल से प्यारी ।तू जग में है सबसे न्यारी । तू चले हिरन बल खा जाए। तुझे देख चाँद शर्मा जाए। तेरे बँधे केश से इंद्र विवश। लट खोले बादल बरस उठे। तेरे होंठो का रस पीने को। मैखाने देखो तरस उठे। ये नयन तीर से हैं तीखे। जिसे देख ये दिल डर जाता है। मर जाता है वह शख्स तभी । जब प्रेम रोग हो जाता है। - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- बधाई पत्र

अभी अभी मेरे दिल में खयाल आया है॥ हजारों लाखों बहारेँ ये साल लाया है। सभी बड़ों को तो हमने प्रणाम भेजे हैं। करके बंद हमने लिफाफे में प्राण भेजे हैं।- -उदय भान कनपुरिया

Wednesday, August 18, 2010

कविता -मेरी प्यारी पत्नी ( MY LOVING WIFE)

पत्नी मेरी धर्म-कर्म में, साथ हमेशा मेरे॥ रूप रंग में अव्वल है वह, संग लिए हैं फेरे॥ तन मन की ताकत बन जाती, जब भी मैं घबराऊँ॥ दर्द अंग का हर लेती है,जब जब मैं थक जाऊँ॥ होम प्रबंधन के विषयों में, कई वर्ष का अनुभव॥ लालन पालन हो बच्चों का , बिन इसके क्या संभव॥ चाल है इसकी हिरनी जैसी, बोली मधुर सुहाती॥ कभी क्रोध वश नहीं चीखती, कभी नहीं चिल्लाती॥ नए जमाने के लोगों से, गिटपिट इग्लिश बोले॥ दादी अम्मा के संग बैठे, साँझ ढले वृत खोले॥ कहती है मैं मर जाऊंगी, अगर छोड़ के जाओ॥ जान तुम्हारी मैं ले लूँगी, दूजी को जो लाओ॥ लगते हैं उसको तो गुण में , सभी पड़ोसी अच्छे॥ फिर अकसर भोलेपन में वो, खा जाती है गच्चे॥ दिल में कोई बात न रखती ,नेक नियति वाली है॥ मेरी तो बस एक है बीबी, बाकी सब साली हैं॥ -- उदय भान कनपुरिया

मेरी माँ (POEM- MY MOTHER)

देवताओं से भी पहले ,मैं तो पूजूँ माँ को बस ॥ मेरी जननी ;माँ तुझे,मेरे समर्पित जन्म दस॥ स्व को तजकर क्यों सदा, तुमने हमें सब कुछ दिया॥ अन्न -कपड़ा; दूध -माखन, सब दिया कुछ न लिया॥ हम सभी बेटे तुम्हारे , त्याग को करते नमन॥ स्वास्थ्य खोकर ; स्वस्थ रखना पुत्र को, तुम हो चमन ॥ जिस तरह ये प्रकृति हरपल, पुत्र को देती रही॥ सारे झंझावात झेले, कष्ट सह बहती रही॥ उसी मांफिक बह रही है, माँ तेरी ममता जहाँ॥ पूज्य है सबसे प्रथम , इस धरा पर हे माँ वहाँ॥ इसलिए हे त्याग की प्रतिमूर्ति ,तुझको पूजता हूँ॥ हर जनम रज चरण पाऊं, ऐसी योनी खोजता हूँ॥ - - उदय भान गुप्ता

Tuesday, August 17, 2010

बाल कविता- मेरे मम्मी पापा(POEM-MY PARENTS)

पापा मेरे तोँदूमल हैं, मम्मी है फूलों की बेल । पापा मेरे बिलकुल बुद्धू ,मम्मी है नाँलेज की रेल। पापा मेरे बड़े भुलक्कड़ ,मम्मी को सब याद रहे।पापा का बटुआ है खाली, माँ का धर आबाद रहे। पर मेरे पापा हैं सीधे , मुझको हरदम भाते हैं। मेला मुझको ले जाते हैं, झूले पर झुलवाते हैं॥ --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -छोटा बच्चा (POEM-LITTLE BABY)

पाँच बजे मैं उठ जाती हूँ, सात बजे जाती स्कूल। एक बजे फिर लंच करूँ मैं, शाम पाँच सब जाती भूल॥ खेल खेलती हूँ जी भर के, खूब उड़ाती हूँ मैं धूल। रात डिनर पापा मम्मी के, संग नौ बजे होता है। साढ़े नौ पर गुड नाइट कर, छोटा बच्चा सोता है। --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -भारत देश (POEM-MY COUNTRY india)

देश हमारी माता है, हमको भारत भाता है॥ दुनिया की हम आशा हैं, यही नयी परिभाषा है। अन्न यहीं उपजाऐंगे, जान लुटाते जाऐँगे॥ शांति संदेशा लाऐँगे, विश्व विजय कर आएँगे॥ हमको आगे बढ़ना है,चोटी पर भी चढ़ना है॥पीछे मुड़ न देखेंगे, दुश्मन पे बम फेंकेगे॥ दुश्मन तेरी खैर नहीं, करना हमसे बैर नहीं॥ जोश हमारे मन में है, शौर्य हमारे तन में है॥ जिसने माँ का दूध पिया, आ कर ले जो नहीं किया॥ हम सब सच्चे वीर हैं, जोशीले रणधीर हैं॥जय भारती ----उदय भान गुप्ता

छोटी बिटिया -कादम्बरी (POEM- KADAMBARI)

कादम्बर इक नाम अनोखा, बोली कोयल खा मत धोखा॥ कोयल ,मैना नाम इसी के, मीठी वाणी; देव सरीखे॥ कादम्बर ही सरस्वती है, वो देवी है और सती है॥ बाणभट्ट की लिखी कहानी, कादम्बर की सुनो कहानी॥कितना सुंदर नाम तुम्हारा, करो जगत में नाम हमारा॥ --उदय भान गुप्ता

Monday, August 16, 2010

बाल कविता -रक्षा बंधन (POEM- RAKHI)

दोहा -रक्षा बंधन में जुड़े, दोनो बहना भाई। करेँ आरती देती रुचना, राखी संग मिठाई॥ राम कृष्ण के देश में, कैसा भइया प्रेम। बहनोँ के आशीष पा, यूवक जीतेँ देश॥ आज कल की औरतें, आंटी से चिढ जाऐँ।बुढियोँ से दीदी कहो,तब तुमसे बतियाऐँ॥ --उदय भान गुप्ता

बाल कविता -गायत्री (POEM- GAYATRI)

वेदों ने इक छंद बताया,हम सब ने भी उसको गाया। गायत्री है नाम उसी का, छ: वर्णोँ में जिसको पाया। लिखा उसी में इक श्लोक ,जपते रहते जिसको लोग।खैर का पेड़ भी गायत्री के, नाम से जाना जाता है।कैथा जिससे बनता है, जो पान में खाया जाता है। मंत्र गायत्री सबसे पावन, पूर्ण कामना ;भर जाए दामन। उस ईश्वर ने हमें बनाया, हम सब उसकी ही हैं छाया। वो हम सब का पालन करता, सब दुखियोँ के दुख वह हरता। तेज उसी का चारों ओर, हर इक कण पर उसका जोर।तुझको हर पल भजते भगवन, मार्ग दिखा दो ;बन जाए जीवन। यही मंत्र का मतलब है, गायत्री क्या है? रब है। गायत्री सावित्री हैँ, गायत्री माँ दुर्गा हैं। जय माँ गायत्री--- उदय भान गुप्ता

Sunday, August 15, 2010

मंगल कामना( POEM- GOOD WISHES)

मिल रहे दो ह्रदय कोमल ,आज मंगल गीत गाओ। प्रभु कृपा से ही मिली है, यह सुघर जोड़ी सुहानी। हर अधर पर स्वयं मुखरित ,प्रति कि पावन कहानी। प्रीति अंकुर बीन के कवि, गीत कोई गुनगुनाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ तब दरश को तृषित थे दृग, टकटकी पथ पर लगाए।आगमन की आस में प्रिय , पलक पारंबर बिछाए। हो गए हैं धन्य लालन, नेह नित नूतन बड़ाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ जगत पति जगदीश मानो, स्वगत नगरी में पधारे। समर्पित मिथलेश सादर , हम सदा सेवक तुम्हारे। आप हम करके कृपा बस, अब हमें अपना बनाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ युग युगों के स्वप्न सचमुच, हो रहे साकार भाई। मेरे संबंधी सभी सज्जन , परस्पर दें बधाई। सुगम मालाऐँ गले में, झूलती झूले झुलाओ। आज मंगल गीत गाओ॥ धनीराम सुजान श्रीयुत, शिवरतन स्वामी हमारे। प्राप्त हो आनंद वैभव, शांति एवं सौख्य सारे। आज प्रभुदयाल प्रमुदित, स्वयं तन मन धन लुटाओ। आज मंगल गीत गाओ॥

बाल कविता -उन्नति

मैं भारत देश की उन्नति हूँ, मैं विश्व मुकुट सी सुंदर हूँ। मैं धर्म कर्म में लीन सदा, मैं जन जीवन की उन्नति हूँ। जो आशावादी होता है। वह मेरा साथी होता है। जो घोर निराशावादी है, मैं उनकी जीवन अवनति हूँ। आकाश में उड़ते पंछी हों, या मस्त कलंदर हाथी हों। वो सभी धरा के अंग सदा , मैं उन सब की भी उन्नति हूँ। ओ देश सपूतोँ उठ जागो , कर्मठ बनकर दौड़ो भागो। अब विश्व कि नजरें तुम पर हैं, रणधीर तुम्हारी उन्नति हो।-- उदय भान गुप्ता

बाल कविता -नांग पंचमी

ईश्वर के सब प्राणी बेटे, हम उनमेँ से एक।कोई चीँटी कोई हाथी, नाग भी उनमें एक। फिर क्यों मानव दादा बनकर, सब पर जुल्म दिखाता। देखे नाग तुरत दे मारे, खुद को बड़ा बताता। नाग पंचमी पर भारत में, दूध नाग को देते हैं। बच्चा हो या बड़ा, सभी आशीष उसी से लेते हैं। गेहूँ -चने उबाल के खाते, खीर और सिँवई बनाते हैं । कानपुर में गुड़िया के भी, नाम से इसे मनाते हैं। -- उदय भान गुप्ता

Thursday, August 12, 2010

बाल कविता -स्वतंत्रता दिवस-15 अगस्त

स्वतंत्र हैं स्वतंत्रता दिवस पे हम, ये जान लो । देश -आन को हि अपनी आन,लोगों मान लो। देश की प्रगति के बिन, हमारी कुछ वकत नहीं। देश पहले है तभी तो हम हैं, वर्ना हम नहीं। कर्म की महानता हि, धर्म को करे बड़ा। देश की विशालता हि, क्रांति को करे खड़ा। सबसे पहले शांति हो, अमन भी हो; ओ चैन भी। सबके बाजुओँ का दम लगे तो,भागे रैन भी। हम तो देश पुत्र हैं, ओ धरती के सुपुत्र भी। युद्ध में जो डट खड़े हों,भाग जाए शत्रु भी। -उदय भान गुप्ता

Badal Mama

बाल कविता -कश्मीर समस्या

काश्मीर के दो टुकड़े हैं, एक पाक पे एक यहाँ। मुसलमान सब रहते उसमें, पंडित उनने दिए भगा। तीन सौ छप्पन धारा लाकर,काश्मीर को बड़ा किया। लोग वहाँ के देश विरोधी , स्वायत्ता पर जोर दिया। स्वर्ग वहीं है नर्क वहीं, ईश्वर ने वरदान दिया। आतंकी छाया में पलकर ,मानव ने बर्बाद किया। शान्ति प्रक्रिया कायम होकर , अमन चैन जब छाएगा। तभी वहाँ का हर इक बच्चा, अच्छा जीवन पाएगा। --उदय भान गुप्ता

Wednesday, August 11, 2010

बाल कविता- बाढ़

रिमझिम रिमझिम बरस रहा है, आसमान से पानी। छाता लेकर गई मार्केट, मैं और मेरी नानी। अगले दिन रस्तोँ पे पानी, घर बाहर में पानी। स्कूलों में छुट्टी हो गई, आफिस में मनमानी। दिन दस बीते; हाल था नाजुक, छत पर सब चढ़ बैठे। नाँव बन गई कई घरों में, परेशान सब जेठे। सेना ने राशन बरसाया, कई बचाई जानें।राजनीति अब तेज हो गई, नेता लगे कमाने। इसके बाद गाँव मेँ मेरे, कभी बाढ़ जो आई। तुमसे मेरे किशन कन्हैया होगी खूब लड़ाई। --उदय भान गुप्ता

बाल कविता - चीँटी

लाल रंग की चीँटी देखी, देखी काली मैंने ।एक लाइन में चली जा रहीं,कोई नहीं अकेले।देखी मैंने उसकी हिम्मत ,चढ़ जाती दस मंजिल पर। अपने से दस गुना उठाती,लाद गठरिया पीठी पर। अनुशासन की बात सिखाती, अपने जीवन दर्शन से। मानव को जीना सिखलाती , चीँटी अपने जीवन से।

बाल कविता मँहगाई

रात और दिन की अंतर दिखता, एक साल में भावों का। आम आदमी दुबला होता , जाए शहरों गाँवों का। दाल ओ चावल चखै अमीरी, दूध सभिन से सस्ता भा। मोट मेहरिया सूँघे सब्जी, दुबरन का बिल खस्ता भा। ऊँचे ऊँचे सपने देकर, गल्ला बीच सड़क सड़वाइन । नकली माल खिलाइन पहले, ओके बाद देत अजवाइन।बैंक सभी के देत है कर्जा, कर्जे मा घर मोटर पाइन। ओसे जब मँहगाई भड़की, कउनो रस्ता नहीँ सुझाइन। अब तो सबसे सस्ता फोनवा, लड़का लड़की चोँच लड़ाऐँ। शर्म हया की बातें छोड़ो, बिना ब्याह संग सोवैँ खाऐँ। भ्रष्टाचारी कलमाड़ी तो बहुत ही बड़ा खिलाड़ी बा। कामनवैल्थ कराइन को ऊ, देश के पैसा खाइल बा। एक तरफ गल्ला सड़ता है, कहीं भूख से होती मौत। एक तरफ सूखा पड़ता है, कहीं बाढ़ पर लूट खसोट। मँहगाई ने दामन चीरा, क्या कुछ अब बच पाएगा । राम चंद्र कह गए सिया से, कौआ मोती खाएगा।