Sunday, August 15, 2010

बाल कविता -उन्नति

मैं भारत देश की उन्नति हूँ, मैं विश्व मुकुट सी सुंदर हूँ। मैं धर्म कर्म में लीन सदा, मैं जन जीवन की उन्नति हूँ। जो आशावादी होता है। वह मेरा साथी होता है। जो घोर निराशावादी है, मैं उनकी जीवन अवनति हूँ। आकाश में उड़ते पंछी हों, या मस्त कलंदर हाथी हों। वो सभी धरा के अंग सदा , मैं उन सब की भी उन्नति हूँ। ओ देश सपूतोँ उठ जागो , कर्मठ बनकर दौड़ो भागो। अब विश्व कि नजरें तुम पर हैं, रणधीर तुम्हारी उन्नति हो।-- उदय भान गुप्ता

1 comment:

  1. Thank You, Guptaji
    Hamain yah kavita bahut pasand aaye.

    RPS

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