Wednesday, September 29, 2010

बाल कविता छुट्टी

रविवार को छुट्टी होती , बाकी दिन होता है काम । दिन में आटा चक्की चलती , रातों को हर शह आराम । दंगा, क्रिकेट , जनम , मरण दिन , भारत में हर दिन अवकाश । ऐसा चलता रहा तो इक दिन भारत बन जाएगा दास । बीजेपी का भारत बंद , कांग्रेस का भारत बंद । मत कर छुट्टी ज्यादा भइया , देश चलेगा बिलकुल मंद । - - उदय भान कनपुरिया

अयोध्या पर फैसला

पहले लोग संस्कृत बोलेँ , अब बोलेँ हैं हिंदी ॥ पहले जो साड़ी पहनें थे , अब पहनें हैं मिँनी ॥ तो फिर हिंदू मुस्लिम दोनोँ , क्यों लड़ते हैं भाई ॥ जब कुछ भी तो फिक्स नहीं है , सब बदलेगा सांई ॥ एक घाट में कई हैं जलते , एक कब्र में कई दफनते ॥ यह धरती हम सब की माता , क्यों भाई को भाई खलते ॥ समय समय पर भेष बदलते , समय समय पर बोली ॥ फिर भी इंसानों की जातेँ , खेलें खूनी होली ॥ राम कहें या कहें रहीमा , दोनों हैं ईश्वर के नाम ॥ टुकड़ों को लड़ते हो पागल , हर कण में उसका है धाम ॥ कर्म करो मत करो लड़ाई , भजते जाओ जय श्री राम ॥ हर दिल में बसते हैं प्रभु जी, जब लेते हैं उनका नाम ॥ जय श्री राम . . . - -उदय भान कनपुरिया

कविता - महात्मा गाँधी

गाँधी बाबा बड़े साहसी, उनकी ताकत श्रेष्ठ विचार ॥ आगे -आगे बापू चलते , पीछे उनके देश का प्यार ॥ भारत माँ का इक गुजराती , जिसने बदला दुनिया को ॥ अंग्रेजोँ की जड़े खोद कर , उन्हें खदेड़ा बाहर को ॥ खादी धारी एक फकीरी , चरखा काते जीते दिल ॥ धर्म स्वदेशी , कर्म स्वदेशी , आजादी उनकी मंजिल ॥ न गन न तलवार उठाते , दुश्मन के बन जाते मीत ॥ दो अक्टूबर को भारत मेँ , सब गाते हैं उनके गीत ॥ - उदय भान कनपुरिया

Friday, September 17, 2010

नवीन वायु सेना गान

सूरज की पहचान अमर है । गंगा अविरल बहती है ॥ नभ में मुखरित और चर्तुदिश । वायु सेना रहती है ॥ हम प्रहरी , आकाश सुरक्षित ।वादा सबसे करते हैं ॥ भारत पर जो आँख उठाए ।ऐसे दुश्मन मरते हैं ॥ हम पंक्षी हैं मुक्त गगन के । दुश्मन हमसे डरता है ॥ हम जब भी हुंकार लगा दें । माँफी माँगा करता है ॥ युद्ध काल में सर्व श्रेष्ठ हैं । शांति काल में धैर्य वती ॥सभी आपदाओं में हमने । धन और जन की वाट तकी ॥ भारत माँ हम नीली सेना । तुझको तिलक लगाऐँगे ॥ जब भी तुझ पर आए आफत । जान लुटाते जाएँगे ॥ हमको तेरी सौँ है माता । हम परचम लहराऐँगे ॥ दुश्मन को ताकत विहीन कर । मर्दन करके आएँगे ॥- - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता- कानपुर की राधा

मैं कानपुर की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं लाल दुपट्टे वाली हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं गोरी गोरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥ मैं टीचर जी की राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥मैं कृष्णा तेरी राधा हूँ ॥ मुझे ऐसी वैसी मत समझौ ॥- - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, September 15, 2010

आकाश

बादल भी जिसको पा न सके , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जिसे क्षितिज में सागर चूम रहा , आकाश उसी का नाम सुनो ॥ जो प्यार करे फिर दे आवाज , मैं उसका दामन भरता हूँ ॥अभिमानी अत्याचारी को , मैं भूमि दिखा के रहता हूँ ॥मैं ईश्वर का घर बार सदा ,है स्वर्ग नर्क का द्वार कहाँ ? वैसे तो पृथ्वी सब खींचे , पर रूहोँ का संसार कहाँ ? आकाश परिँदोँ की धरती , आकाश जहाजों की माया ॥ आकाश धरा के छत जैसा , आकाश मोहब्बत की छाया ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Saturday, September 11, 2010

सतसंग

हे भगवन सब सतसंगी हों , जीवन में सब धर्म वृती हों ॥ हो ज्ञानी या हो अज्ञानी , प्रभु चरणों में सभी रती हों ॥ राम नाम का मरम बड़ा है , कृष्ण कन्हइया यहीं खड़ा है ॥ बंद पलक से उसको देखूं , हम सबमेँ तो वही बड़ा है ॥ - - उदय भान कनपुरिया

जय गणेश

लम्बोदर है नाम उन्ही का , एक दंत भी कहते हैं॥ हर दिन सीता - राम धरा पर , नाम उन्ही का लेते हैं ॥ बल में शिव के गण हारे थे , बुद्धि में सब देव जने ॥ श्री गणेश को लड्डू प्यारे , कभी न खाते खड़े चने ॥ हम सब को देते हैं शिक्षा , मातु - पिता की सेवा का ॥ अबकी उनको भोग लगाएँ , मिलकर हम सब मेवे का ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, September 8, 2010

काँमनवैल्थ गेम- कविता commonwealth games poem

धरती हमारी माँ है , जीवन हमारा इससे ॥ बचपन से हम बढ़ें हैं , शेरोँ के सुन के किस्से ॥ हाकी हमारी चाची , कुश्ती हमारे चच्चा ॥ शूटिंग में मारे बुल पे , हिन्दोस्ताँ का बच्चा ॥ गंगा के पुत्र हम हैं , सागर को चीर डालें ॥ जब तैरने को आवेँ , मछली को पार पालेँ ॥ हमने कबड्डियोँ में , सरताज को हराया ॥ शतरंज का खिलाड़ी , हमसे न बचने पाया ॥ बिलियर्ड में है सेठी , राहुल बसे अमेठी ॥ जब दौड़ते हैं मिल्खा , दुश्मन दिखाता पीठी ॥ टेनिस में पेस - भूपति , दुश्मन को मात देते ॥ देखें जो सानिया को , वो दिल को थाम लेते ॥ शीला तू अबकी दिल्ली , दुल्हन बना के रख दे ॥ भारत विजय करेगा , दुनिया को सारी चख दे ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Tuesday, September 7, 2010

आधुनिक पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं विद्या बालन के कुर्ते में टाँका जाऊँ ॥ चाह नहीँ राखी का प्रेमी बन शादी को ललचाऊँ ॥ चाह नहीं अस्पतालों में घुसूँ , बुके में मुस्कराऊँ ॥ मुझे तोड़ लेना अमीर माली । फ्लावर शो में देना तुम भेज । मातृ भूमि के कितने बच्चे , नित दिन आते मस्ती हेतु ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Monday, September 6, 2010

मेरी बहन मीतू

इस जीवन की आशा है जो , सदा सरल परिभाषा है जो ॥ सबसे सुंदर मुस्कान लिए , आकाशी अभिलाषा है जो ॥ नयनोँ की आभा बनी रहे , चहरे की कांति चमक जाए ॥नित नए जोश से भर कर वो , सारी दुनिया पर छा जाए ॥ आशीष मेरा हर पल तुझ पर , ईश्वर तुझ पर उपकार करें ॥ तुम स्वस्थ रहो आजीवन भर , धन -धान्य भरा घर - द्वार रहे ॥ मीतू मेरी बहना प्यारी , मैं हर पल तुमको याद करूँ ॥ जब जो चाहो कहना मुझसे , मैं हर पल दिल के पास रहूँ ॥ - - उदय भान कनपुरिया