Thursday, October 28, 2010

बाल कविता - काम चोर

काम चोर भी बड़ा नाम है । काम की चोरी बड़ा काम है । बड़े देश में बड़े निकम्मे ।चाय नाश्ता हर इक पल में । काम की बातें न भई न । गप्प निठल्ले हाँ भई हाँ । देश बिकेगा बिकने दो । मान घटेगा घटने दो ॥ अपनी हर दम करें बढ़ाई ॥ मक्खन बाजी चुगली भाई ॥ - -उदय भान कनपुरिया

Wednesday, October 27, 2010

बाल कविता- मेरी मम्मी

मुझे मम्मी के हाथों की रोटी पसंद ॥ मुझे मम्मी के हाथों का स्वेटर पसंद ॥ मुझे मम्मी के गाए भजन भाते हैं ॥ मुझे मम्मी के लाए ही ड्रेस भाते हैं ॥ मेरी मम्मी ही हम सब के कपड़े सिलेँ ॥ मेरी मम्मी ही हम सब से भेँटे मिलेँ ॥ मेरे भगवन मेरी तुमसे विनती यही ॥ मेरी मम्मी को कुछ भी सतावे नहीं ॥ मेरी मम्मी की तबीयत बनाए रखना ॥ मेरी मम्मी को हरदम हँसाऐ रखना ॥ - - - - उदय भान कनपुरिया

Monday, October 25, 2010

बाल कविता - दीपावली

दीपावली महोत्सव आया , लाया खुशियाँ प्यारी ॥ आँगन हर इक दीप जलेंगे ,पुलकित हैं नर - नारी ॥ लक्ष्मी माँ की पूजा होगी , गट्टे - खील चढ़ाऐँगे ॥ जब गणेश की पूजा होगी , लड्डू भोग लगाऐँगे ॥ बिजली की झालर से सारे , घर को हम ढक देते हैं ॥ रंग , पुताई , पेँट , सफाई ,सभी लोग कर लेते हैं। हाथी , घोड़े , बैल- खिलौने , चीनी के बनवाते हैं ॥ चूड़ा - लइया संग मिठाई , बच्चे खुशी से खाते हैं ॥ अपने घर से खील - मिठाई , दूजे घर भिजवाई ॥ दीवाली में सब कहते हैं , हम सब भाई - भाई ॥ राम चंद्र की बनी अयोध्या , दीवाली थी तभी मनी । इस दिन जो लक्ष्मी को पूजे , हो जाता है वही धनी ॥ - -- - उदय भान कनपुरिया

Wednesday, October 13, 2010

दशहरा

मम्मी आज दशहरा मेला । मैं तो देखन जाऊंगी ॥ कंधे पर पापा के बैठी । रावण को जलवाऊँगी ॥ मूँगफली खीलेँ और गट्टा । मेले मे मैं खाऊँगी ॥ गुड्डा, गुड़िया , बर्तन , चूड़ी , खूब खिलौने लाऊँगी ॥ मम्मी आज ............॥ अबकी लँहगा चुनरी लूँगी । लाल दुपट्टा ओढूँगी ॥ धनुष बाँण ले के मेले से । दुष्टोँ को न छोडूँगी ॥ मम्मी आज ..............॥ - - - - उदय भान कनपुरिया

चाँद

चाँद ईद का चाँद दूज का । मैं तो हर दिन चाँद पूजता ॥ सावन की पूरनमासी हो । या फिर हो चकवी का चाँद ॥ रूप रंग में सबसे अव्वल । हर करवा पर चौथा चाँद । चाँद चौदवीँ मेरा प्रियतम ॥ छठ पूजा में पूजूँ चाँद ॥ कभी चाँद मेरे मामा हैं । कृष्ण अष्टमी बढके चाँद ॥ - उदय भान कनपुरिया

माँ दुर्गा

मैंने दुर्गा जी को देखा । देखा उनका रूप महान ॥ बड़ी बड़ी आखेँ भी देखी । देखी चेहरे पर मुस्कान ॥ मुकुट स्वर्ण का शीश सुशोभित । हाथों में उनके त्रिशूल ॥ महिषासुर का वध कर डाला । शक करना बिलकुल निर्मूल ॥ दुर्गा हैं शक्ति की देवी । दुर्गा धन और धान्य स्वरूप ॥ दुर्गा हैं देवोँ की देवी । दुर्गा आनंदी फल रूप ॥ ॐ श्री दुर्गाय नम: ॥ ॐ ........... ॥ - उदय भान कनपुरिया