Saturday, November 27, 2010

बाल कविता - खिड़की

घर बाहर का मेल कराती ॥ बंद खिड़कियाँ जेल बनाती ॥ सुबह सुबह जब आँखे खोलूँ ॥ सूरज के दर्शन करवाती ॥ खिड़की से दुनिया दिखती है ॥ खिड़की से दिखती है रेल ॥ दिखती है सड़कों पर गाड़ी ॥ दिखता है बच्चों का खेल ॥ मेरे घर में कई खिड़कियाँ ॥ हवा रोशनी देती हैं ॥ बंद सर्दियाँ , खुली गर्मीयाँ ॥ सबका चित हर लेती हैं ॥ - - उदय भान कनपुरिया

Tuesday, November 16, 2010

चाहत - सुख और दुख

चाहत के दो पहलू होते ,एक है सुख और दूजा दुख ॥ चाहत पूरी पाते सुख , न हो पूरी होता दुख ॥ यदि चाहत ही न हो मन में, तो क्यों सुख दुख हों जीवन में ॥ चाहत को जिसने जीता है , उसका नाम हुआ जन जन में ॥चाहत खाना चाहत खजाना , चाहत रुतबा चाहत जनाना ॥ अब तो छोटे बच्चों को भी मुश्किल होता है समझाना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया

Sunday, November 14, 2010

बाल दिवस

चाचा का बर्थ डे जब आया ॥ दुनिया भर की खुशियाँ लाया ॥ हर बच्चे को बाल दिवस पर ॥ गोदी ले - ले खूब खिलाया ॥ श्वेत कबूतर गगन उड़ाकर ॥ हर हाथों में फूल थमाकर ॥ दुनिया भर को दिया है हमने ॥ शांति का मैसेज घर - घर जाकर ॥ बाल दिवस पर हम सब बच्चे ॥ भारत माँ से करते वादा ॥ शान बढ़ाएँगे भारत की ॥ दुनिया के हर कोने जाकर ॥ चाचा नेहरू की जय- - - उदय भान कनपुरिया

बाल कविता - तबीयत

हुजूर का मिजाज उनकी तबीयत से है ॥ इंसान की बरक्कत उसकी नियत से है ॥अच्छा खाओ तो तबीयत चंगी ॥ सोच हो बढ़िया तो हकीकत नंगी ॥ एक दूसरे की तबीयत बनाए रखना ॥ दिलों को दिलों से मिलाऐ रखना ॥ - - - उदय भान कनपुरिया